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Muslim Astrology Blog

ख़ातून का ग़ैर महरम मर्द को पैग़ाम-ए-निकाह देने के लिए ज़ेब-ओ-ज़ीनत इख़्तियार करना...
हज़रत सुबय्या रज़ी अल्लाहुअन्हा कहती हैं कि वो:
"हज़रत सा'द बिन खौला रज़ी अल्लाहुअन्हु के निकाह में थीं। वो बनू आमिर बिन लु'अय्य क़बीले से त'अल्लुक़ रखते थे। जंग-ए-बद्र में हाज़िर हुए थे। हज्जत-उल-विदा के दौरान में वो फौत हो गएं। उस वक़्त वो हामिला थीं। उनकी वफ़ात में से थोड़ा अर्सा बाद उसने बच्चा जन दिया। जब वो निफ़ास से पाक हुईं तो उसने शादी का पैग़ाम भेजने वालों के लिए ज़ेब-ओ-ज़ीनत की। बनू अब्दुल दार के एक आदमी अबूल सनाबील उसके हां आएं तो कहने लगे: क्या वजह है कि तूने ज़ीनत कर रखी है? शायद तू आगे निकाह करने का इरादा रखती है। अल्लाह की क़सम! तू निकाह नहीं कर सकती हत्ता कि चार माह दस दिन गुज़र जाएं। हज़रत सुबय्या ने फरमाया: जब उन्होंने मुझे ये बात कही तो शाम के वक़्त मैंने अपने कपड़े पहने और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास हाज़िर हुई और आपसे उसके मुत'अल्लिक़ पूछा। आपने मुझे फ़तवा दिया कि जब तूने बच्चा जना तो तेरी इद्दत पूरी हो गई थी। और आपने मुझे अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ निकाह करने की इजाज़त दी।"
(सहीह मुस्लिम: 3722, अबू दाऊद: 2306)
हाफ़िज़ इब्न हजर अस्कलानी रहीमाहुल्लाह इसकी शरह में फरमाते हैं:
"इसमें औरत के लिए ज़ेब-ओ-ज़ीनत इख़्तियार करने का जवाज़ है अपनी इद्दत मुकम्मल करने के बाद उसके लिए जिसको उसने निकाह का पैग़ाम भेजा।
क्योंकि ज़ुहरी की रिवायत में है जो मग़ाज़ी में है:
उस (अबूल सनाबील ) ने कहा: मैं तुम्हें देखता हूं कि तुमने पैग़ाम-ए-निकाह के लिए ज़ीनत इख़्तियार की।
इब्न इसहाक़ की रिवायत में है कि: वो निकाह के लिए तैयार हुईं और उसने ख़िज़ाब लगाया।
अहमद में है अबूल सनाबील ने उससे मुलाकात की और उसने सुरमा लगाया हुआ था।
और अल असवद की रिवायत में है कि:
उसने ख़ुशबू लगाई हुई थी और तैयार हुई थी।"
(फ़त्ह अल बारी: 12/214)
• ये वाक़ि'आ हज्जत-उल-विदा का है, यानी हिजाब फ़र्ज़ होने के बाद का।
• औरत की ज़ेब-ओ-ज़ीनत सहाबा इसी वजह से देख पाएं क्योंकि सहाबिया ने चेहरे का पर्दा नहीं किया हुआ था।
• ख़ातून ख़ुद ग़ैर महरम मर्द को निकाह का पैग़ाम दे सकती है और उसके लिए ज़ेब-ओ-ज़ीनत इख़्तियार कर सकती है जैसे कि अहादीस के दीगर तुरुक़ में वज़ाहत है।

एक शख़्स ने कहा कि या रसूलुल्लाह! अल्लाह की राह में लड़ाई की क्या सूरत है?
क्योंकि हम में से कोई ग़ुस्से की वजह से और कोई ग़ैरत की वजह से जंग करता है
तो आप (सल्ल०) ने फ़रमाया:
जो अल्लाह के कलिमे को सर-बुलन्द करने के लिये लड़े वो अल्लाह की राह में (लड़ता) है।

रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:-
"जिस शख्स ने किसी को काफ़िर कहकर पुकारा या यह कहकर ऐ अल्लाह के दुश्मन! जबकि जिस को कहा गया है वह ऐसा ना हुआ तो जो बात कही गई है वह बात कहने वाले पर लौट आती है।
📗(मिश्कात 4897)

जब सय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ी अल्लाहुअन्हु के वालिद जनाब अबू क़ुहाफा रज़ी अल्लाहुअन्हु ने इस्लाम क़ुबूल करने के लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बै'अत की तो अबूबक्र रो पड़े। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा: "क्यों रोते हो?" फरमाने लगे: "अगर आज मेरे बाप की जगह आपके चचा (अबू तालिब) इस्लाम क़ुबूल कर लेते, और उसके ज़रिए अल्लाह आपकी आंख ठंडी कर देता, तो ये मुझे ज़्यादा महबूब था।"

मुख़ालफ़त-ए-हदीस का मफ़्हूम...
आँ-हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आदत-ए-फितरत बयान फरमाते हुए ये भी फरमाया है कि "वन नत्फ़ अल इब्त" (सहीह बुखारी: 5889, सहीह मुस्लिम: 597, अबू अवाना: 1/190) "ज़ेर बगल बाल उखाड़े जाएं" लुग़त अरबी में नत्फ़ के माने नोचने के साथ बालों के उखाड़ने के आते हैं। किसी सहीह और मरफ़ू रिवायत में हलक अल इब्त (उस्तरे के साथ ज़ेर बगल बालों का मुंडाना) नहीं आता, मगर जमहूर उम्मत नत्फ़ पर अमल नहीं करती। इमाम नवावी और काज़ी शौकानी नत्फ़ अल इब्त की शरह में लिखते हैं कि ज़ेर बगल बालों का उखाड़ना बिल-इत्तिफ़ाक़ सुन्नत है और अफ़ज़ल इसमें जो उस पर कादिर हो, उखाड़ना ही है और मुंडवाने और चूने से ज़ाइल करने से भी ये मक़्सद हासिल हो जाता है। यूनुस बिन अब्दुल आ'ला से मरवी है, वो फरमाते हैं कि इमाम शाफ़ि'ई के पास गया तो उनके पास हज्जाम था जो उनके बगलों के बाल उस्तरे से साफ़ कर रहा था। हज़रत इमाम शाफ़ि'ई ने अज़ ख़ुद ही ये फरमाया कि मैं इसको जानता हूं कि सुन्नत बालों का उखाड़ना ही है मगर मैं उस तकलीफ़ को बर्दाश्त नहीं कर सकता। (शरह मुस्लिम: 1/129, नील अल अवतार: 2/14)
जनाब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस हदीस में बा-सराहत कोई ऐसी क़ैद साबित नहीं कि ये हुक्म उस शख़्स के लिए है जो उखाड़ने पर कादिर हो मगर शराह-ए-हदीस इसको इस क़ैद से पाबंद करते हैं और फरमाते हैं कि उस्तरे और चूने से भी ये मक़्सद हासिल हो जाता है। और सबसे बढ़ कर कि इमाम अहले सुन्नत हज़रत इमाम शाफ़ि'ई रहीमाहुल्लाह भी फरमाते हैं कि नत्फ़ अल इब्त की हदीस पर बावजूद उसको सुन्नत कहने के अमल नहीं कर सके और मा'ज़रत कर गए हैं।
असल बात ये है कि जो हज़रात रूह-ए-शरी'अत से वाक़िफ हैं और सिर्फ़ ऊपरी तौर पर ही इक्तिफ़ा नहीं करते, वो बतौर सोच समझ और सही इल्म के ज़रिए ये समझते हैं कि मक़्सूद तो बालों का दूर करना है, ख़्वाह वो किसी भी सूरत से हासिल हो जाए।

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मुहम्मद ﷺ ने यहूदियों के साथ समझौता किया था और आज के यहूदी इतिहासकार इस बात को मानते हैं
यहूदियों की इस तरह की दुश्मनी स्पष्ट हो जाने के बाद भी मुहम्मद ﷺ ने इनके साथ एक समझौता किया
जिसका मकसद यह था कि इंसानियत को अम्न व सलामती, सुख-शांति मिले
चुनांचे आपने उदारता और विशालहृदयता के वो नियम बनाए, जिन्हें इस तास्सुब और अतिवादिता से भरी दुनिया में कोई सोच भी नहीं सकता था
अल्लाह के रसूल ﷺ ने उनके साथ एक समझौता किया, जिसमें उन्हें दीन व मजहब और जान व माल की बिल्कुल आज़ादी दी गई थी
समझौते की धाराएं:
◆बनू औफ के यहूदी मुसलमानों के साथ मिलकर एक ही उम्मत होंगे
◆यहूदी अपने दीन पर अमल करेंगे और मुसलमान अपने दीन पर और खुद उनका भी यही हक़ होगा और उनके गुलामों और संबंधित लोगों का भी और बनू औफ के अलावा दूसरे यहूदियों का भी यही हक़ होंगे
◆यहूदी अपने खर्च के ज़िम्मेदार होंगे और मुसलमान अपने खर्च के और जो ताक़त इस समझौते के किसी फरीक से लड़ाई करेगी, सब उसके खिलाफ आपस मे सहायता करेंगे और इस समझौते में शरीक गिरोहों के आपसी सम्बंध एक दूसरे का हित चाहने, भलाई करने और फायदे पहुंचाने की बुनियाद पर होंगे, गुनाह पर नहीं
◆कोई आदमी अपने मित्र की वजह से अपराधी न ठहराया जाएगा
◆मज़लूम की मदद की जाएगी
◆जब तक लड़ाई चलती रहेगी, यहूदी भी मुसलमानों के बीच खर्च सहन करेंगे
◆इस समझौते के तमाम शरीक लोगों पर मदीने में हंगामा करना और क़त्ल का खून हराम होगा
◆इस समझौते के फ़रीकों में कोई नई बात या झगड़ा पैदा हो जाए, जिसमें फसाद का डर हो, तो इसका फ़ैसला अल्लाह और मुहम्मद रसूलुल्लाह ﷺ फरमाएंगे
◆कुरैश और उसके मददगारों को पनाह नहीं दी जाएगी
◆जो कोई यसरिब पर धावा बोल दे उससे लड़ने के लिए सब आपस में सहयोग करेंगे और हर फ़रीक़ अपने-अपने लोगों की रक्षा करेगा
◆यह समझौता किसी ज़ालिम या मुजरिम के लिए आड़ न बनेगा
📗इब्ने हिशाम 1/231-232
यह वो समझौता था जिसमे दोनों फरीक के बराबर के हक़ थे
वर्तमान यहूदी इतिहास के जानकार ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि अल्लाह के रसूल (ﷺ) और मदीना के यहूदियों के बीच में समझौता हुआ था. कुछ प्रमाण देखें:
“The first treaty which the Messenger of God concluded with the Jews of Medina took place when he concluded a truce with the Nadir, Qurayza, and Qaynuqa in Medina, stipulating that they refrain from supporting the pagans and help the Muslims…!”
“पहली संधि जो अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मदीना के यहूदियों के साथ संपन्न की, वो उस समय थी जब आप (ﷺ) ने बनी नज़ीर, कुरैज़ा और क़ैनुक़ाअ़ के साथ मदीना में एक समझौता किया, यह शर्त रखते हुए कि वे काफ़िरों का समर्थन करने से बचेंगे, और मुसलमानों की मदद करेंगे।”
📗 Dhimmis and Others: Jews and Christians and the World of Classical Islam [Israel Oriental Studies], by Michael Lecker, volume 17, page 31
इस बात की पूरी चर्चा एक ईसाई स्कौलर ‘Dr. Montgomery Watt’ की मशहूर किताब ‘Muhammad at Medina’ में भी मौजूद है
एक तरफ़ जब मुस्लिम फौज अपना बचाव करने में लगी हुई थी, उधर दूसरी तरफ बनू क़ुरैज़ा, मुह़म्मद (ﷺ) से किए गए समझौते को तोड़ने में लगे थे. बात का निचोड़ ये कि बनी नज़ीर का सरदार ‘ह़ुयै इब्ने अख़त़ब’, बनी क़ुरैज़ा के सरदार ‘कअ़ब इब्ने असद क़ुरज़ी’ के पास आया और बोला कि मुह़म्मद (ﷺ) से किए हुए समझौते को तोड़ दो. पहले तो ‘कअ़ब इब्ने असद क़ुरज़ी’ मना करता रहा, मगर बाद में उसकी बातों में आ गया.
📗 Muhammad at Medina, page 196
जब मुहम्मद (ﷺ) को बनू क़ुरैज़ा की धोखाधड़ी की ख़बर पहुंची, तो आप (ﷺ) ने कुछ लोगों को बनू क़ुरैज़ा के पास भेजा ताकि हक़ीक़त मालूम हो जाए. जब वो लोग बनू क़ुरैज़ा के पास पहुंचे और उनसे पूछा, तो उन्होंने अल्लाह के रसूल (ﷺ) को बुरा कहा और साफ-साफ कह दिया कि: “हमारे और तुम्हारे बीच कोई समझौता नहीं.”
📗 Muhammad at Medina
ये किस्सा भी ‘Dr. Montgomery Watt’ की इसी किताब ‘Muhammad at Medina’ में देखा जा सकता है.
उनके संधि तोड़ने के बारे में एक और हवाला ग़ैरों मुस्लिमों की किताब से देखें:
“The Massacre of the Banu Quraiza, A re-examination of a tradition – [Jerusalem Studies in Arabic and Islam, (Magnes Press, Hebrew University of Jerusalem – 1986)] by, Professor Meir J. Kister, Vol. 8, page 81

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‪हैकल सुलेमानी की तारीख और‬ ‪यहूदी‬ ‎अव्वल से‬ ‪आज तक‬

‪‎एक होश उड़ा देने वाला तारीखी सच‬?

हैकल सुलेमानी के बारे में जानने के लिए तारीख के पन्नों को पलटना ज़रूरी है इसलिए ये बात याद रखने के काबिल है के यहूदी हज़रत सारा अलैहि० की औलाद हैं

जबकि इस्लाम के आखरी पैगम्बर हजरत मुहम्मद ﷺ हजरत इब्राहीम अलैहि० की दूसरी बीबी हज़रत हाजरा अलैहि० की औलाद में से हैं

हज़रत इस्माइल अलैहि० हज़रत बीबी हाजरा के बेटे हैं

इब्राहिम अलैहि० हज़रत हाजरा को हज़रत बीबी सारा की ख्वाहिश और अल्लाह तआला के हुक्म पर मौजूदा मक्का की बेआबाद ज़मीन पर ले गए

अल्लाह तआला को हजरत हाजरा और उनके बेटे हज़रत इस्माइल अलैहि० की न्याज़मन्दी और ख़ुशनूदी इतनी पसन्द आयी कि इस मकाम पर हज़रत हाजरा का नन्हे इस्माइल के लिए भाग दौड़ करना हज का रुकून बना दिया गया

आबे ज़मज़म जारी कर दिया गया और हज़रत इस्माइल के अल्लाह की राह में कुरबान होने की अदा को कुर्बानी बना दिया गया

फिर इस मकाम को पहला बैतुल्लाह बना दिया गया और कयामत तक यही रहेगा

ये हजरत हाजरा और उनकी औलाद के लिए अल्लाह तआला की तरफ से बहुत बड़ी इज़्ज़त अफ़ज़ाई वाली बात थी यही बात आज तक यहूदियो को हज़म नही हुई

वो ये समझते हैं की ये कैसे हो सकता है के हम अल्लाह की सबसे लाडली कौम होने के बावजूद हमे इस बैतुल्लाह की जानिब मुह कर के इबादत करनी पड़े

जिसे हज़रत इस्माइल अलैहि० ने अपने वालिद हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के साथ मिलकर बनाया हो

वो हज़रत इस्माइल अलैहि० को सिरे से नबी ही नही समझते हैं

वो समझते हैं की नबूवत पर सिर्फ उनका ही हक है

वो हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माइल अलैहि० की बेहद तौहीन करते हैं और बेहद गुस्ताखी भरे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल करते हैं, मज़ाक उड़ाते हैं

आम तौर पर ख्याल किया जाता है की प्यारे नबी हजरत मुहम्मद ﷺ के खाके व गुस्ताखाना कार्टून कुछ अखबार इत्तेफाक से बनाते हैं लेकिन ऐसा हरगिज़ नही है

इसके पीछे यहूदियो की सदियो पुरानी नफरत छुपी हुई है जो उनको बीबी हाजरा अलैहि० से थी

जैसा की ऊपर बताया गया है की यहूदियो को तास्सुब की वजह से बैतुल्लाह की तरफ मुह कर के इबादत करने से बहुत तकलीफ थी

इसलिए वो चाहते थे उनका क़िबला कोई और होना चाहिए

चुनाचे एक वक्त ऐसा आया के अल्लाह ने उनकी आज़माइश के लिए के वो राहे रास्त पर आते हैं या नहीं, कुछ वक्त के लिए मौजूदा मक़ामे अक्सा की तरफ मुह कर के इबादत करने का हुक्म फ़रमाया

हैकल सुलेमानी की तामीर

ये दरहक़ीक़त एक मस्जिद थी इस गलत फहमी का दूर होना भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि बैतुल्लाह रोये ज़मीन पर सिर्फ एक ही तामीर किया गया था जो हज़रत इब्राहीम अलैहि० ने मक्का में अल्लाह के हुक्म से तामीर किया था

इस के अलावा पूरे कुर्रा ए अर्ज़ पर कोई दूसरा क़िबला या बैतुल्लाह तामीर नही किया गया था

मैं मस्जिद ए अक्सा को हैकल के नाम से इसलिए लिखूंगा ताकि समझने में आसानी रहे

हैकल सुलेमानी की तामीर से पहले यहूदियो के यहां किसी भी बाकायदा हैकल का न तो कोई वुजूद और न इसका कोई तव्वुर था

इस कौम की बद्दुओं वाली खाना बदोश ज़िन्दगी थी उनका हैकल या माबद एक खेमा था

इस खेमे में ताबूत ए सकीना रखा होता था जिसकी जानिब ये रुख कर के इबादत किया करते थे

रवायत के मुताबिक़ के ताबूत जिस लकड़ी से तैयार किया गया था उसे शमशाद कहते हैं और उसे जन्नत से हज़रत आदम अलैहि सलाम के पास भेजा गया था

ये ताबूत नस्ल दर नस्ल अम्बिया से होता हुआ मूसा अलैहि सलाम तक पहुंचा था

इस मुक़द्दस सन्दूक में हज़रत मूसा अलैहि सलाम का असा (छड़ी) मन्ना वस सलवा और दूसरे अम्बिया अलैहिस्सलाम की यादगारें थी

यहूदी इस ताबूत की बरकत से हर मुसीबत और परेशानी का हल निकाल लिया करते थे

दूसरी कौमो के साथ जंगों में भी इस सन्दूक को लश्कर के आगे रखा करते थे

इसकी बरकत से जंगो में फतह हासिल किया करते थे

जब हज़रत दाऊद अलैहि सलाम को बादशाहत अता हुई तो आपने अपने लिए एक बाकायदा बेहतरीन महल तामीर करवाया

एक दिन उनके ज़हन में ख्याल आया के मैं तो खुद महल में रहता हूँ जब कि मेरी कौम का माबद आज भी खेमे में रखा हुआ है "बादशाह ने कहा मैं तो देवदार की शानदार लकड़ी से बने महल में रहता हूँ मगर खुदा वन्द का ताबूत एक खेमे में पड़ा हुआ है" (स्मोवियल2:4)

चुनांचे आपने हैकल की तामीर का इरादा किया और उसके लिए एक जगह का चुनाव किया गया

विशेषज्ञयो ने आपको मशवरा दिया के इस हैकल की तामीर आपके दौर में नामुमकिन है

आप इसका जिम्मा अपने बेटे सुलेमान अलैहि सलाम को सौंप दीजिये चुनांचे हज़रत सुलेमान अलैहि सलाम ने अपने दौरे हुकूमत के चौथे साल में इसकी तामीर का बाकायदा आगाज़ कर दिया

आज इसकी बनावट और मज़बूती से अंदाज़ा किया जा सकता है ये तामीर इंसानो के बस की बात नहीं थी

इतने भारी और बड़े पथरो को जिन्नातो की ताकत से चुना गया था जिन पर हज़रत सुलेमान अलैहि सलाम की हुकूमत थी ये हैकल माबद या मस्जिद बहुत ही आलिशान और वसीअ थी और इसमें तीन हिस्से थे

बेरूनी हिस्से में आम लोग इबादत किया करते थे

इससे अगले हिस्से में उलमा जो की अम्बिया की औलादो में से होते थे उनकी इबादत की जगह थी

इसके अगले हिस्से में जो की सबसे ज़्यादा मुक़द्दस समझा जाता था उसमे ताबूत ए सकीना रखा गया था

इस हिस्से में किसी को भी दाखिल होने की इजाज़त नही थी

सिवाय सबसे बड़े आलिम पेश इमाम के

वक्त गुज़रता रहा और इस दौरान बनी इसराइल में पैगम्बर होते रहे लेकिन फिर भी ये कौम बद से बदतर होती रही

ये किसी भी तरह अपने गुनाहो से तौबा तायब होने या उनको तर्क करने के लिए तैयार नही थी

ये कौम बिलकुल आज हमारी उम्मते मुस्लिमा की तरह एक तरफ इबादतें किया करते थे तो दूसरी तरफ अल्लाह के अहकाम की खुली मुखालफत और खिलाफ वर्जि करते रहे

उनकी इस दोगली पॉलिसी से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त नाराज़ हो गया और उनके पास सबसे पहले मूसा अलैहि सलाम रसूल बनाकर भेजे गए और दुसरे रसूल हज़रत ईसा अलैहि सलाम थे

हज़रत मूसा से हज़रत ईसा के बीच का वक्त 14 सौ साल बनता है

उनके अलावा और बहुत बड़ी तादाद में अम्बिया भी भेजे गए लेकिन ये कौम सुधरने को तयार न थी यहां तक की उनकी शक्लों को अल्लाह पाक ने बन्दर और सूअर तक का बना दिया लेकिन ये फिर भी बाज़ न आये तब अल्लाह तआला ने इन पर लानत कर दी

586 ईसा पूर्व में बख्त नसर ने उनके मुल्क पर हमला किया

उनका हैकल तबाह और बर्बाद कर दिया

हैकल में से ताबूत ए सकीना निकाल लिया

6 लाख से ज़्यादा यहूदियों को कत्ल कर डाला

2 लाख यहूदियो को कैद कर लिया और अपने साथ बाबुल ईराक ले गया

शहर से बाहर यहूदीयो की एक बस्ती कायम की गई जिसका नाम तेल अबीब रखा गया

70 साल तक हैकल सफा हस्ती से मिटा रहा दूसरी तरफ बख्त नसर ने ताबूत ए सकीना की शदीद बे हुरमती की और उसे कहीं फेंक दिया

कहा जाता है की इस बेहुरमती की हरकत का अज़ाब उसे इस तरह मिला के सन 539 ईसा पूर्व में ईरान के बादशाह सायरस ने बाबिल ईराक पर हमला कर दिया और बाबिल से उसकी सल्तनत का खात्मा कर दिया

सायरिस एक नरम दिल और इन्साफ पसंद हुक्मरान था

उसने तेल अबीब के तमाम कैदियों को आज़ाद कर के उनको वापस येरुशलम जाने की इजाज़त दे दी और साथ में उनको हैकल के नए सिरे से तामीर करने की भी इजाज़त दे दी और तामीर में हर तरह की मदद करने का वादा भी किया

अतः हैकल की दूसरी तामीर 537 ईसा पूर्व में शुरू हुई लेकिन तामीर का काम करने वालो को अपने ही हमवतन दुश्मनो की इतनी ज़्यादा मुखालफत झेलनी पड़ी के तामीर का काम बन्द करना पड़ा और डेरियस 1 के दौरे हुकूमत तक बन्द रहा उसकी हुकूमत के दुसरे साल में हज़रत ज़करिया अलैहि सलाम ने वहां के गवर्नर ज़रोबा बिल और सरदार काहिन यूशोवाह की हौसला अफ़ज़ाई की ताकि वो हैकल की तामीर की दुबारा कोशिश करें, जिस पर उन्होंने पॉजिटिव रद्द ए अमल का इज़हार किया और साढ़े चार में 515-520 में तयार हो गया लेकिन इस बार इसमें ताबूत ए सकीना नही था इस के बारे में आजतक मालूम न हो स्का की बख्त नसर ने उसका क्या किया

कुछ लोगो का कहना है उसने मुक़द्दस सन्दूक को तौहीन से बचाने के लिए अल्लाह के हुक्म से कहीँ महफूज़ जगह पर दफना दिया या छिपा दिया जिसका किसी इंसान को पता नही लेकिन यहूदी इसकी खोज में पूरी दुनियां को खोद देना चाहते हैं

आम तौर पर इतिहासकार हैकल की दो बार तामीर और दो बार तबाही का ज़िक्र करते हैं लेकिन इतिहास को बारीकी से पड़ने पर पता चलता है की ऐसा नही है बल्कि हैकल को तीन बार तामीर किया गया लेकिन इसके साथ भी एक दिलचस्प कहानी वजूद में आई हैरोड्स ने जब इसकी बेहतरीन तरीके से तामीर की तो यहूदियो के दिल में एक खौफ पैदा हुआ की अगर इसको नए सिरे से तामीर के लिए गिराया गया तो दोबारा तामीर नही होगा हैरोड्स ने उनको बहलाने के लिए कहा की वो सिर्फ इसकी मरम्मत करना चाहता है, उसे गिराना नही चाहता चुनाचे सन् 19 ईसा पूर्व में उसने हैकल के एक तरफ के हिस्से को गिरा दिया और तब्दीली के साथ और बड़ा कर के तामीर करवाया ये तरीका कामयाब रहा और यहूदियो की इबादत में बिना खलल डाले हैकल के थोड़े थोड़े हिस्से को गिरा दिया जाता और उसकी जगह नया और पहले से अलग हैकल वुजूद में आता रहा, ये काम 18 महीने में मुकम्मल हुआ

इस तरह तीसरी बार हैरोड्स के ज़रिये एक नया हैकल वजूद में आगया और कुछ अरसे के बाद हज़रत ईसा अलैहि सलाम का ज़हूर हुआ

अल्लाह के इस रसूल पर यहूदियो ने अपने मामूल के मुताबिक़ ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ने शुरू कर दिए

दरअसल यहूदी अपने मसीहा के इंतज़ार में थे जो दोबारा आकर उनको पहले जैसी शानो शौकत अता करता

हज़रत ईसा अलैहि सलाम के ज़हूर होने के 70 साल बाद एक बार फिर यहूदियो पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ

इस बार इस अज़ाब का नाम टाइट्स था ये रूमी जरनैल बाबिल के बादशाह बख्त नसर से भी ज़ालिम साबित हुआ

उसने एक एक दिन में लाखो यहूदियो को फना कर दिया

उसने हैरोड्स के तामीर किये गए अज़ीमुश शान हैकल की ईंट से ईट बजा दी और यहूदियो को हमेशा के लिए येरुशलम से निकाल बाहर किया

यहूदी पूरी दुनिया में बिखर कर रुस्वा होकर रह गए

लगभग 18 या 19 सौ साल तक भटकने के बाद ब्रिटेन ने जब फिलिस्तीन पर कब्जा किया तो साथ ही एक नाजायज़ बच्चे इस्राइल को फिलिस्तीन में जन्म दे दिया

इस तरह सदियो से दुखने खाने वाली अल्लाह की लानत ज़दा कौम को एक बार फिर से इस मुल्क इसराइल में इकट्ठे होने रहने की इजाज़त मिल गई लेकिन ये कौम अपनी हज़ारो साल पुरानी गन्दी फितरत से बाज़ न आई

ये ब्रिटेन के जन्म दिए हुए इस्राइल तक महदूद न रहे

एक बार फिर से अपने पड़ोसी मुल्को के लिए अपनी फितरत से मजबूर होकर मुसीबत बनने लगे

5 जून 1967 को इन्होंने सीरिया की गोलान पहाड़ी पर कब्जा कर लिया

1968 में अर्दन के मग़रिबी किनारे पर काबिज़ हो गए

इसी साल मिस्र के इलाके पर भी कब्जा कर लिया

आज इस कौम की शरारतें और फूर्तियां देखकर अंदाज़ा होता है की ये लोग आज से दो तीन हज़ार साल पहले भी किस कदर हारामी थे जिसकी वजह से अल्लाह ने उन पर लानत कर दी थी

मुस्लिम मुल्को की बे गैरती और बुज़दिली की वजह से अब इसने पूरी दुनिया के मुस्लिम मुल्को में आग लगा कर रख दी है

अब इनका अगला मिशन जल्द से जल्द इस हैकल की तामीर है और इस हैकल में तख्त ए दाऊद और ताबूत ए सकीना को दोबारा रखना है

इस हैकल की तामीर के नतीजे में ये पूरी दुनियां जंग की आग में लिपट जायेगी लेकिन इस कौम को इसकी कोई परवाह नहीं

यहूदियो को जिस बस्ती तेल अबीब में बख्त नसर ने बंधक बना कर रखा था वो इसको आज तक नही भूले

इन्होंने इस्राइल बनाने के बाद अपने एक शहर का नाम तेल अबीब रख दिया जो आज इस्राइल की राजधानी है जबकि हम मुसलमान उस मस्जिदे अक्सा को भूल गए हैं जहाँ हमारे नबी ﷺ ने मेराज का सफर शुरू किया था

यहूदी आज तक बार बार गिराये गए हैकल को नही भूलते यहां तक की उसमे रखे गए ताबूत ए सकीना की तलाश में पूरी दुनिया को खोद देना चाहते हैं

इस तारीखी दुश्मनी और यहूदी साजिशो का अध्ययन करने पर आज ये महसूस होता है की वो वक्त बहुत करीब आ गया है जब मुसलमानो के खिलाफ यहूदी एक बहुत बड़ी खुली जंग का ऐलान करेंगे क्योंकि ताबूत ए सकीना कहाँ है वो खुद नही जानते और उनका शक है की ताबूत ए सकीना या तो मदीना मुनव्वरा में रोज़ा ए रसूल ﷺ के नीचे या फिर बैतुल्लाह के नीचे मुसलमानो ने छिपा रखा है

तारीख में ऐसी एक कोशिश की भी जा चुकी है

पोस्ट मज़ीद और लम्बा हो जाएगा अगर उसका ज़िक्र किया जाए

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मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:

"क़ियामत क़ायम नहीं होगी यहाँ तक कि अरब की सरज़मीन दोबारा चरागाहों (हरियाली) और नहरों में बदल जाएगी"

[सहीह मुस्लिम : 2339]

यानी मुहम्मद ﷺ आज से 1400 साल पहले फरमा रहे है कि पहले अरब की सरजमीन हरी होगी उसके बाद कयामत आएगी और आज ये पेशनगोई हम अपनी आंखों से पूरी होती देख पा रहे है।

नासा की सेटेलाइट रिपोर्ट के मुताबिक:

1987 CE में सेटेलाइट से अरब में सिर्फ रेगिस्तान ही रेगिस्तान नजर आता था फिर कुछ समय बाद 1991 CE सेटेलाइट इमेजेस में कुछ हरियाली दिखी और 2000 CE में थोड़ा और बढ़कर दिखी और 2012 में और बड़ी और आज अरब का बहुत हिस्सा हरा नजर आता है और आज सऊदी अरब के कई इलाकों में खेत और हरियाली आ चुकी है और सऊदी अरब भी 2030 तक 450 मिलियन पेड़ लगाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। जिसके बाद अरब और ज्यादा हरा हो जायेगा। ये पेशनगोई कि अरब हरा हो जायेगा हमारी आंखों के सामने पूरी हो रही है। जरा सोचें आज से 1400 पहले ये सब कौन बता सकता था वो भी इतनी एक्युरेटली?

मुहम्मद ﷺ की इस पेशनगोई का पूरा होना इस बात का सबूत है आप ﷺ अल्लाह के सच्चे पैगम्बर है।

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सूरज का अंत। (the end of sun )

आज साइंस यह कहती है कि जो हम सूरज की रोशनी देखते हैं। यह केमिकल रिएक्शन की वजह से है। जो 5 अरब सालों से चल रहा है। और एक दिन यह केमिकल रिएक्शन बंद हो जाएगा। और सूरज बुझ जाएगा। लेकिन साइंसदान यह कहते हैं के इसको खत्म होने में अभी और करोड़ों साल लगेगा। मतलब साइंसदान इस बात पर इत्तेफाक रखते हैं कि सूरज एक दिन खत्म हो जाएगा।

इस हकीकत को कुरान में अल्लाह रब्बुलआलमीन ने 1400 साल पहले ही बता दिया है।

❤️अल कुरान।(chapter 36 verse 38)

और सूरज, वो अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है।

कुरान में अरबिक शब्द है (मुस्तकर) जिसका मतलब है तय वक्त। और तय जगह। जिसे आज साइंस मानती है के सूरज तय जगह जिसको साइंस सोलर एपिक्स बोलती है। उसकी तरफ जा रहा है।

यह जो साइंस दान कुछ साल पहले बता रहे है। सूरज खत्म हो जाएगा। और सूरज कुछ वक्त के लिए है। वगैरह वगैरह।अल्लाह रब्बुलआलमीन ने 1400 साल पहले ही कुरान में बता दिया है।

♥️ अल कुरान (chapter 41 verse 53)

जल्द ही हम इनको अपनी निशानियाँ बाहरी दुनिया में भी दिखाएँगे और इनके अपने अन्दर भी, यहाँ तक कि इनपर ये बात खुल जाएगी कि ये क़ुरआन सचमुच हक़ है।क्या ये बात काफ़ी नहीं है कि तेरा रब हर चीज़ का गवाह है?

बेशक आज हम देख रहे हैं अल्लाह रब्बुल आलमीन का कुरान में किया हुआ वादा पूरा हो चुका है और अल्हम्दुलिल्लाह हो भी रहा है। बेशक यह कुरान कोई इंसानी किताब हो ही नहीं सकता है। बल्कि इसे उस रब्बुल आलमीन भेजा है। जो इस दुनिया को बनाया है जो इन सारे निजाम को चला रहा है।

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2 अक्टूबर बैतुल मुकद्दस की फतह
27 रजब 583 हिजरी बामुताबिक 2 अक्टूबर 1187 ईसवी में सुल्तान सलाहुद्दीन अयूबी के हाथों सलीबियों की हार के बाद फतेह हुआ
सलाउद्दीन अयूबी ने जंग हतीन में कामयाबी हासिल करने के बाद बैतुल मुकद्दस मुहासिरा (घेराव) कर लिया और 20 सितंबर से 2 अक्टूबर तक जारी रहने वाले घेराव के बाद शहर फतह कर लिया गया,
फतेह मुकद्दस के बाद सुल्तान ने किसी तरह का खून खराबा नहीं किया जिसका मुजाहिरा पहली सलीबी जंग के मौके पर सलिबियों ने किया था।
4 जुलाई 1187 ई को जंग हतीन में जबरदस्त हार के बाद मसीही हुक्मरानों की मिल्कियत बैतुल मुक़द्दस कमजोर पड़ गई और कई ओहदेदार सलाहुद्दीन अयूबी की कैद में आ गए।
सितंबर के बीच में सलाउद्दीन अयूबी ने अक्का नाबल्स याफ़ा , सैदून, बेरुत और दीगर शहर फतेह कर लिए जंग के शिकस्त खाए हुए मसीही सूर पहुंच गए जहां हतीन के जंग से हार कर भागे मसीही जंगजू भी इकट्ठा थे जिनमें बेलियन एबीलिनी भी शामिल था।
उसने अपने परिवार को वापस लाने के लिए सलाउद्दीन अयूबी से मुतालिबा किया वह उसे बैतुल कद्दस जाने की इजाजत दे सलाउद्दीन अय्यूबी रहमतुल्लाह अलैह ने इस शर्त पर इजाजत दी कि वह 1 दिन से ज्यादा नहीं रुकेगा।
लेकिन जब वहां पहुंचा तो मलिका सबलिया उसे शहर का बचाव करने का मुतालिबा करते हुए फ़ौज की कमान संभालने की हिदायत की बिलियन उनका मुतालबा तस्लीम करते हुए जंग की तैयारी शुरू कर दी और शहर में खाने पीने की चीजें और हथियारों का भंडार जमा करना शुरू कर दिया।
सलाउद्दीनअय्यूबी रहमतुल्लाह अलैह की कयादत में शाम और मिस्र की फौज भी सूर के नाकाम मुहासिरे के बाद 20 सितंबर 1187 को पहुंच गई।
islam astrology सलाउद्दीन और बिलियन के बीच बात चीत हुई सलाउद्दीन अय्यूबी बिना खून खराबे के शहर हासिल करना चाहते थे लेकिन मसीही बगैर लड़े बैतुल मुकद्दस छोड़ने से इनकार कर दिया और धमकी दी कि वह पूरअमन तौर पर शहर दुश्मन के हवाले नहीं करेंगे बल्कि उसे तबाह करने और खुद मर जाने को तैयार हैं
समझौते में नाकामी पर सलाउद्दीन अयूबी ने शहर का घेराव कर लिया सलाउद्दीन की फौज ब्रिज दाऊद और बाब ए दमिश्क के सामने खड़ी हो गई और तीरंदाजों ने हमले का आगाज कर दिया ,उसके अलावा मन्जनीकों के जरिए भी शहर पर पत्थर बरसाए गए सलाउद्दीन अयूबी की फौज ने कई बार दीवार तोड़ने की कोशिश की लेकिन नाकामी हुई।
6 दिन बाद घेराव के सलाउद्दीन अयूबी की फौज को शहर के दूसरे हिस्से की तरफ भेज दिया गया और हमला जबल जैतून के तरफ से जारी किया गया 29 सितंबर को मुस्लिम फौजी शहर की दीवार का एक हिस्सा गिराने में कामयाब हो गई लेकिन फौज फौरी तौर पर शहर में दाखिल नहीं हुई और दुश्मन की फौजी ताकत को कमजोर करती रही।
सितंबर के आखिरी में बिलियन ने सलाउद्दीन अयूबी से समझौता के दौरान हथियार डाल दिए सलाउद्दीन अयूबी ने मर्दों के लिए 20 औरतों के लिए 10 और बच्चों के लिए पांच अशरफियो का फिदीया का मुतालबा किया जो लोग यह रकम नहीं दे सके उनके बदले में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी रहमतुल्लाह अलैह ने खुद अदा किया।
2 अक्टूबर को बिलियन ने बृज दाऊद की चाबियां सुल्तान सलाहुद्दीन अयूबी के हवाले की इस मौके पर ऐलान किया गया की तमाम मसीहियों को फीदिया की अदायगी के लिए 1 महीने का वक्त दिया जा रहा है जिसमें 50 दिन की और बढ़ोतरी की गई।
फतह बैतुल मुकद्दस के बाद सलाउद्दीन अयूबी का सबसे बड़ा कारनामा यही था कि उन्होंने मसीहियों से मुसलमानों के उस कत्लेआम का बदला नहीं लिया जो उन्होंने 1099 में बैतूल मुकद्दस में फतह के बाद किया था।
बल्कि सलाउद्दीन अयूबी ने उन्हें बहुत हद दर्जा तक रियायत दे दी फतेह के बाद सुल्तान सलाउद्दीन अयूबी ने अर्क गुलाब से बैतुल मुक़द्दस धुलवाया।
फतह बैतुल मुकद्दस की खबर यूरोप के मसीहीयों पर बिजली बन कर गिरी जिसके जवाब में उन्होंने तीसरी सलीबी जंग का ऐलान कर दिया और इंग्लैंड का रिचर्ड्स शेर दिल फ्रांस का फिलिप ऑगस्टस जर्मनी का फ्रेडरिक बारबरूसा की निगरानी में एक बहुत बड़ा मसीही लश्कर बैतुल मुकद्दस पर पढ़ाई के लिए रवाना हुआ।
बैतूल मुकद्दस पर तकरीबन 761 साल लगातार मुसलमानों का कब्जा रहा आखिर में 1948 में अमेरिका ब्रितानिया फ्रांस की मक्कारीयों और क़ौम के मीर जाफरों मीर सादिकों की गद्दारी से फलस्तीन के इलाके में यहूदी सल्तनत कायम की गई और बेतुल मुकद्दस का आधा हिस्सा यहूदियों के कब्जे में चला गया।
1967 ईस्वी की अरब इस्राइल जंग में बैतूल मुकद्दस पर इसराइल ने कब्जा कर लिया तब से अब तक जारी है...

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बहुत से भाई इस तरह की बेकार दलील देते हैं के बुखारी और दीगर हदीस बाद में लिखी गई हैं, तो वो भी दीन में नया काम है, क्या वाकई? हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र -बिन-अल-आस (रज़ि०) से नक़ल हुई है वो कहते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ से मैं जो कुछ सुनता वो सब लिख लिया करता था ताकि उसे याद कर लूँ। तो (कुछ) क़ुरैशियों ने मुझे मना किया, उन्होंने कहा: तू हर बात जो सुनता है, लिख लेता है हालाँकि रसूलुल्लाह ﷺ एक इन्सान हैं ग़ुस्सा और ख़ुशी (दोनों हालतों) में बातचीत करते हैं तो मैंने लिखना रोक दिया और ये बात रसूलुल्लाह ﷺ से कही। तो आप ﷺ ने अपने मुँह की तरफ़ उँगली से इशारा करते हुए फ़रमाया : लिखा करो क़सम उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है ! इससे सिवाए हक़ के और कुछ निकलता ही नहीं है। हदीस लिखने का हुकुम खुद हमारे नबी ने दिया है, ये दीन में कोई नया काम नहीं है। अबु दाऊद 3646

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حَدَّثَنَا أَبُو نُعَيْمٍ ، قَالَ : حَدَّثَنَا سُفْيَانُ ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ أَبِي بَكْرٍ ، عَنْ عَبَّادِ بْنِ تَمِيمٍ ، عَنْ عَمِّهِ ، قَالَ : خَرَجَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَسْتَسْقِي وَحَوَّلَ رِدَاءَهُ . नबी करीम (सल्ल०) पानी की दुआ करने के लिये तशरीफ़ ले गए और अपनी चादर उलटाई। Sahih Bukhari#1005 किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

حَدَّثَنَا قُتَيْبَةُ ، حَدَّثَنَا مُغِيرَةُ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ ، عَنْ أَبِي الزِّنَادِ ، عَنِ الْأَعْرَجِ ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، أَنّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ إِذَا رَفَعَ رَأْسَهُ مِنَ الرَّكْعَةِ الْآخِرَةِ يَقُولُ : اللَّهُمَّ أَنْجِ عَيَّاشَ بْنَ أَبِي رَبِيعَةَ ، اللَّهُمَّ أَنْجِ سَلَمَةَ بْنَ هِشَامٍ ، اللَّهُمَّ أَنْجِ الْوَلِيدَ بْنَ الْوَلِيدِ ، اللَّهُمَّ أَنْجِ الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ ، اللَّهُمَّ اشْدُدْ وَطْأَتَكَ عَلَى مُضَرَ ، اللَّهُمَّ اجْعَلْهَا سِنِينَ كَسِنِي يُوسُفَ ، وَأَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، قَالَ : غِفَارُ غَفَرَ اللَّهُ لَهَا وَأَسْلَمُ سَالَمَهَا اللَّهُ ، قَالَ ابْنُ أَبِي الزِّنَادِ : عَنْ أَبِيهِ هَذَا كُلُّهُ فِي الصُّبْحِ .

नबी करीम (सल्ल०) जब सिर आख़िरी रकअत (के रुकूअ ) से उठाते तो इस तरह फ़रमाते

 اللهم أنج عياش بن أبي ربيعة ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم أنج سلمة بن هشام ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم أنج الوليد بن الوليد ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم أنج المستضعفين من المؤمنين ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم اشدد وطأتك على مضر ، ‏‏‏‏ ‏‏‏‏ اللهم اجعلها سنين كسني يوسفकि या अल्लाह! अयाश-बिन-अबी-रबीआ को नजात दे। या अल्लाह! सलमा-बिन-हिशाम को नजात दे। या अल्लाह! वलीद-बिन-वलीद को नजात दे। या अल्लाह! बे-बस नातवाँ मुसलमानों को नजात दे। या अल्लाह! मुज़र के काफ़िरों को सख़्त पकड़। या अल्लाह! उन के साल यूसुफ़ (अलैहि०) के से साल कर दे। और नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, ग़िफ़ारी की क़ौम को अल्लाह ने बख़्श दिया और असलम की क़ौम को अल्लाह ने सलामत रखा। इब्ने-अबी-ज़िनाद ने अपने बाप से सुबह की नमाज़ में यही दुआ नक़ल की। Sahih Bukhari#1006 किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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हम अब्दुल्लाह-बिन-मसऊद (रज़ि०) की ख़िदमत में बैठे हुए थे। आप ने फ़रमाया कि नबी करीम (सल्ल०) ने जब क़ुरैश के काफ़िरों की सरकशी देखी तो आप (सल्ल०) ने बद्दुआ की ( اللهم سبع كسبع يوسف ) कि ऐ अल्लाह! सात बरस का क़हत (सूखा) उन पर भेज जैसे यूसुफ़ (अलैहि०) के वक़्त मैं भेजा था। चुनांचे ऐसा क़हत (सूखा) पड़ा कि हर चीज़ तबाह हो गई और लोगों ने चमड़े और मुर्दार तक खा लिये। भूक की शिद्दत का ये आलिम था कि आसमान की तरफ़ नज़र उठाई जाती तो धुएँ की तरह मालूम होता था आख़िर मजबूर हो कर अबू-सुफ़ियान हाज़िरे-ख़िदमत हुए और कहा कि ऐ मुहम्मद (सल्ल०) ! आप लोगों को अल्लाह की इताअत और सिला रहमी का हुक्म देते हैं। अब तो आप ही की क़ौम बर्बाद हो रही है इसलिये आप अल्लाह से उन के हक़ मैं दुआ कीजिये। अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि उस दिन का इन्तिज़ार कर जब आसमान साफ़ धुँआँ नज़र आएगा आयत ( انکم عائدون ) तक (इसी के साथ) जब हम सख़्ती से उन की पकड़ करेंगे (काफ़िरों की) सख़्त पकड़ बद्र की लड़ाई में हुई। धुएँ का भी मामला गुज़र चुका (जब सख़्त क़हत (सूखा) पड़ा था) जिसमें पकड़ और क़ैद का ज़िक्र है वो सब हो चुके इसी तरह सूरा रूम की आयत में जो ज़िक्र है वो भी हो चुका।
Sahih Bukhari#1007
किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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حَدَّثَنَا عَمْرُو بْنُ عَلِيٍّ ، قَالَ : حَدَّثَنَا أَبُو قُتَيْبَةَ ، قَالَ : حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ دِينَارٍ ، عَنْ أَبِيهِ ، قَالَ : سَمِعْتُ ابْنَ عُمَرَ يَتَمَثَّلُ بِشِعْرِ أَبِي طَالِبٍ وَأَبْيَضَ يُسْتَسْقَى الْغَمَامُ بِوَجْهِهِ ثِمَالُ الْيَتَامَى عِصْمَةٌ لِلْأَرَامِلِ .

मैंने इब्ने-उमर (रज़ि०) को अबू-तालिब का ये शेर पढ़ते सुना था (तर्जमा) गवारा उन का रंग उन के मुँह के वास्ते से बारिश की (अल्लाह से) दुआ की जाती है। यतीमों की पनाह और बेवाओं के सहारे।
Sahih Bukhari#1008
किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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وَقَالَ عُمَرُ بْنُ حَمْزَةَ حَدَّثَنَا سَالِمٌ ، عَنْ أَبِيهِ ، رُبَّمَا ذَكَرْتُ قَوْلَ الشَّاعِرِ وَأَنَا أَنْظُرُ إِلَى وَجْهِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَسْتَسْقِي ، فَمَا يَنْزِلُ حَتَّى يَجِيشَ كُلُّ مِيزَابٍ وَأَبْيَضَ يُسْتَسْقَى الْغَمَامُ بِوَجْهِهِ ثِمَالُ الْيَتَامَى عِصْمَةٌ لِلْأَرَامِلِ ، وَهُوَ قَوْلُ أَبِي طَالِبٍ .

अक्सर मुझे शाइर (अबू-तालिब) का शेर याद आ जाता है। मैं नबी करीम (सल्ल०) के मुँह को देख रहा था कि आप इस्तिस्क़ा की दुआ (मेम्बर पर) कर रहे थे। और अभी ( दुआ से फ़ारिग़ हो कर) उतरे भी नहीं थे कि तमाम नाले भर गए।  وأبيض يستسقى الغمام بوجهه ثمال اليتامى عصمة للأرامل(तर्जमा) गोरा रंग उनका, वो हिमायती यतीमों बेवाओं के, लोग उनके मुँह के सदक़े से पानी माँगते हैं।
Sahih Bukhari#1009
किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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حَدَّثَنَا الْحَسَنُ بْنُ مُحَمَّدٍ ، قَالَ : حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ الْأَنْصَارِيُّ ، قَالَ : حَدَّثَنِي أَبِي عَبْدُ اللَّهِ بْنُ الْمُثَنَّى ، عَنْ ثُمَامَةَ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ أَنَسٍ ، عَنْ أَنَسٍ ، أَنَّ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ كَانَ إِذَا قَحَطُوا اسْتَسْقَى بِالْعَبَّاسِ بْنِ عَبْدِ الْمُطَّلِبِ ، فَقَالَ : اللَّهُمَّ إِنَّا كُنَّا نَتَوَسَّلُ إِلَيْكَ بِنَبِيِّنَا فَتَسْقِينَا ، وَإِنَّا نَتَوَسَّلُ إِلَيْكَ بِعَمِّ نَبِيِّنَا فَاسْقِنَا ، قَالَ : فَيُسْقَوْنَ .
जब कभी उमर (रज़ि०) के ज़माने में क़हत (सूखा) पड़ता तो उमर (रज़ि०) अब्बास-बिन-अब्दुल-मुत्तलिब (रज़ि०) के वसीले (ज़रिए) से दुआ करते और फ़रमाते कि ऐ अल्लाह! पहले हम तेरे पास अपने नबी करीम (सल्ल०) का वसीला (ज़रिआ) लाया करते थे, तो तू पानी बरसाता था। अब हम अपने नबी करीम (सल्ल०) के चचा को वसीला (ज़रिआ) बनाते हैं तो तू हम पर पानी बरसा। अनस (रज़ि०) ने कहा कि फिर बारिश ख़ूब ही बरसी।
Sahih Bukhari#1010
किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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حَدَّثَنَا إِسْحَاقُ ، قَالَ : حَدَّثَنَا وَهْبُ ، قَالَ : أَخْبَرَنَا شُعْبَةُ ، عَنْ مُحَمَّدِ بْنِ أَبِي بَكْرٍ ، عَنْ عَبَّادِ بْنِ تَمِيمٍ ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ زَيْدٍ ، أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ اسْتَسْقَى فَقَلَبَ رِدَاءَهُ .
नबी करीम (सल्ल०) ने दुआ इस्तिस्क़ा की तो अपनी चादर को भी उल्टा।
Sahih Bukhari#1011
किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ عَبْدِ اللَّهِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا سُفْيَانُ ، عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ أَبِي بَكْرٍ ، أَنَّهُ سَمِعَ عَبَّادَ بْنَ تَمِيمٍ يُحَدِّثُ أَبَاهُ عَنْ عَمِّهِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ زَيْدٍ ، أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ خَرَجَ إِلَى الْمُصَلَّى فَاسْتَسْقَى فَاسْتَقْبَلَ الْقِبْلَةَ وَقَلَبَ رِدَاءَهُ ، وَصَلَّى رَكْعَتَيْنِ ، قَالَ أَبُو عَبْد اللَّهِ : كَانَ ابْنُ عُيَيْنَةَ يَقُولُ : هُوَ صَاحِبُ الْأَذَانِ وَلَكِنَّهُ ، وَهْمٌ لِأَنَّ هَذَا عَبْدُ اللَّهِ بْنُ زَيْدِ بْنِ عَاصِمٍ الْمَازِنِيُّ مَازِنُ الْأَنْصَارِ .
नबी करीम (सल्ल०) ईदगाह गए। आप (सल्ल०) ने वहाँ दुआए इस्तिस्क़ा क़िबले की तरफ़ हो कर की और आप (सल्ल०) ने चादर भी पलटी और दो रकअत नमाज़ पढ़ी। अबू-अब्दुल्लाह (इमाम बुख़ारी (रह०)) कहते हैं कि इब्ने-उएना कहते थे कि (हदीस के रावी अब्दुल्लाह-बिन-ज़ैद) वही हैं जिन्होंने अज़ान ख़्वाब में देखी थी लेकिन ये उन की ग़लती है क्योंकि ये अब्दुल्लाह इब्ने-ज़ैद-बिन-आसिम माज़िनी है जो अंसार के क़बीला माज़िन से थे। Sahih Bukhari#1012 किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح

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حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ ، قَالَ : حَدَّثَنِي مَالِكٌ ، عَنْ شَرِيكِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ أَبِي نَمِرٍ ، عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ ، قَالَ : جَاءَ رَجُلٌ إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ : يَا رَسُولَ اللَّهِ هَلَكَتِ الْمَوَاشِي وَانْقَطَعَتِ السُّبُلُ فَادْعُ اللَّهَ ، فَدَعَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَمُطِرُوا مِنْ جُمُعَةٍ إِلَى جُمُعَةٍ ، فَجَاءَ رَجُلٌ إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ : يَا رَسُولَ اللَّهِ تَهَدَّمَتِ الْبُيُوتُ وَتَقَطَّعَتِ السُّبُلُ وَهَلَكَتِ الْمَوَاشِي ، فَقَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : اللَّهُمَّ عَلَى رُءُوسِ الْجِبَالِ وَالْآكَامِ وَبُطُونِ الْأَوْدِيَةِ وَمَنَابِتِ الشَّجَرِ فَانْجَابَتْ عَنْ الْمَدِينَةِ انْجِيَابَ الثَّوْبِ .
एक शख़्स रसूलुल्लाह (सल्ल०) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। कहा कि या रसूलुल्लाह (सल्ल०) ! मवेशी हलाक हो गए और रास्ते बन्द हो गए। आप अल्लाह तआला से दुआ कीजिये। रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने दुआ फ़रमाई तो एक जुमा से दूसरे जुमा तक बारिश होती रही फिर दूसरे जुमा को एक शख़्स हाज़िरे-ख़िदमत हुआ और कहा कि या रसूलुल्लाह (सल्ल०) ! (बारिश की कसरत से) मकान गिर गए, रास्ते बन्द हो गए और मवेशी हलाक हो गए। चुनांचे रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने दुआ फ़रमाई اللهم على رءوس الجبال والآكام وبطون الأودية ومنابت الشجرकि ऐ अल्लाह! पहाड़ों टीलों वादियों और बाग़ की तरफ़ बारिश का रुख़ कर दे। (जहाँ बारिश की कमी है) चुनांचे आप (सल्ल०) की दुआ से बादल कपड़े की तरह फट गया। Sahih Bukhari#1017 किताब : इस्तिस्क़ा यानी पानी माँगने का बयान Status: صحیح